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लेखक:

विद्या विंदु सिंह
लोक संस्कृति में रची-बसी भारतीय संस्कृति को पहचान देने में निरंतर साधना करनेवाली विद्या विंदु सिंह की कहानियाँ गाँव की संस्कृति बाँचती हैं। उनके कथा साहित्य में नारी विमर्श का एक नया रूप प्रस्तुत होता है। उनके पात्र संघर्षों से जूझते हैं, आग में तपकर स्वयं को सोने सा निखारते हैं। वे केवल अपने लिए नहीं जीते, समाज का ऋण चुकाते हुए जीते हैं और स्वयं को एक ऐसी आभा देते हैं कि उनके आलोक में लोग मार्ग पा सकें।

यह उत्सर्ग भाव स्वयं को मिटाने के लिए नहीं, स्वयं को पहचान देने का है, जीवन की सार्थकता पाने का है। ये पात्र सिद्ध करते हैं कि स्त्री दया या करुणा की पात्र नहीं, सबके प्रति ममत्व बिखेरने वाली शक्ति है।

गाँव की जमीन से जुड़ी ये कहानियाँ आधुनिक उपभोक्ता संस्कृति के पीछे भागते हुए अशांत मन को विश्राम देने का आमंत्रण देती हैं। टूटते परिवारों के बीच उठती दीवारों को पारदर्शी बनाकर रूठों को मनाने का न्योता देती हैं।

इन कहानियों को पढ़कर मन में आश्वस्ति जगती है कि अवध की लोक संस्कृति में रचा-बसा मन आज भी सीता-राम की संस्कृति का संवाहक है। इन कहानियों में शहर में रहते हुए भी गाँव की जोड़ने वाली संस्कृति का रस है, वापस जमीन से जुड़ने का चाव है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों का दर्द है, उपेक्षित कन्या के महत्त्वपूर्ण अस्तित्व की पहचान है। अबला कही जाने वाली नारी का पुरुषार्थ और पराक्रम है, जो सहारा पाने से अधिक, सहारा देने में विश्वास रखती है।

विद्या विंदु सिंह की लोकप्रिय कहानियाँ

विद्या विन्दु सिंह

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नारी को दया अथवा कृपापात्र न समझकर उसे ममता, करुणा और शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली कहानियाँ   आगे...

श्रीहरि नाम महिमा

विद्या विन्दु सिंह

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‘श्री हरिनाम महिमा’ पुस्तक भारतीय धर्म-दर्शन को लोक की आँखों से परखने का एक प्रयास है...   आगे...

 

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